नमस्कार दोस्तों मैं वास्तु पथ से बोल रहा हूं दोस्तों हमने इसके पहले वास्तु शास्त्र क्या है वह जानने की कोशिश की थी वास्तु शास्त्र हमारे वेद से आने वाला शास्त्र है आपको पता है हमारे चार वेद है ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद, अथर्ववेद और इन चार वेदों के चार उपवेद है जैसे की ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है सामवेद का उपवेद गंधर्ववेद अथर्ववेद का उपवेद स्थापत्य वेद है हर वेद के ग्रंथकर्ता अलग-अलग है स्थापत्य वेद भगवान विश्वकर्माजीने लिखा है और इसी स्थापत्य वेद का एक भाग यानी की वास्तु शास्त्र है
कहते हैं कि , “यत्र निवसी तत्र देवाहा ” यानी की जहां भगवान वास करते उसी को वास्तु कहते हैं और वास्तु बनाने का शास्त्र यानी वास्तु शास्त्र है वास्तु शास्त्र यानी सिर्फ घर का शास्त्र नहीं है वास्तु शास्त्र यानी जिस जमीन पर हम वस्तु निर्मित करने वाले हैं उसे जमीन का प्रकार भूखंड का प्रकार आजू-बाजू परिसर का पूरा अभ्यास उसके बाद वास्तु निर्माण करना यह सब विषय वास्तु शास्त्र में आते हैं वास्तु शास्त्र हमारे वास्तु यानी की घर के बाहर 80% और घर के अंदर 20% ऐसा होता है तो दोस्तों आगे अगर आप वास्तु शास्त्र का विचार करते हैं तो इन बातों का ध्यान रखिए अच्छा दोस्तों अब अगले लेख में मैं आपको कुछ वास्तु दोष निवारण उपाय बताऊंगा तो आप कृपया इन उपायों को पढ़ते रहिए और अपना जीवन आनंद में और सुखी बनाने के लिए जितना हो सके उतना उपाय योजना कर कर आनंद प्राप्त करें.
दही भात से पितृदोष निवारण !!!!!
दोस्तों आज मुझे कुछ सवाल पूछे गए जैसे की हमारे घर में वास्तु पूजा में वास्तु पुरुष की पूजा हुई या नहीं यह हमें पता नहीं क्या हमारे घर में कुछ वास्तु दोष है पर वह हमें पता नहीं तो इसके लिए क्या उपाय योजना की जाए?
मैं वास्तु पथ से आज आपके लिए कुछ वास्तु दोष निवारण उपाय लेकर आया हूं दोस्तों हर वस्तु में कुछ न कुछ दोष होता ही है परंतु उसके कुछ उपाय भी हमारे शास्त्रों में दिए गए हैं जैसे की अगर हमारे वास्तु में कुछ दोष है जो हमें पता नहीं दोस्तों अभी हमारा हिंदू धर्म के हिसाब से महालय यानी की पितृ पक्ष चालू है दोस्तों आप अपने घर घर के आग्नेय कोण की दिशा में इस पितृपक्ष के खत्म होने के पहले दही भात वास्तु पुरुष को समर्पित करते हुए अपने घर के आग्नेय कोण में 24 मिनट तक रख दीजिए उसके बाद आपके घर के दक्षिण दिशा में यह दही बात उठाकर रख दीजिए अगर घर की दक्षिण दिशा में जगह ना हो तो आप इसे बहता पानी में विसर्जित कर दीजिए दोस्तों जिस घर में भगवान शालिग्राम जी की हरदम पूजा अर्चना होती है उसे घर में वास्तु दोष की तीव्रता ना के बराबर होती है दोस्तों हम जब भी पूजा करते हैं आराधना करते हैं उस पूजा आराधना में हम अपनी इष्ट देव तथा वास्तु पुरुष, स्थान देवता, को प्रणाम जरूर करना चाहिए ऐसा करने से हमारे वास्तु से छोटे-मोटे वास्तु दोष दूर हो जाते हैं वास्तु दोष दूर करने के कुछ छोटे-छोटे उपाय भी आपको बताता हूं जैसे घर की ईशान कोण उत्तर, पूर्व दिशा को हरदम साफ सुथरा एवं हल्का रखना चाहिए किस दिशा में हम तुलसी सेमीपत्र, कुबेरक्षी इन पेड़ों को लगा सकते हैं दोस्तों सुबह उठते ही आप अपने मुख्य दरवाजे की देहरी पर गंगाजल या शुद्ध जल जो भी उपलब्ध हो उसको देहरी पर छिड़कने से भी हमारे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है ऐसे अनेक उपाय हमारे शास्त्रों में दिए गए हैं इस पर हम आगे भी बात कर सकते हैं
मित्रों जब भी हम सुबह नींद से जागते हैं तब आप अपने दोनों हाथों के हथेलियां को देखते हुए “कराग्रे वसते लक्ष्मी कर मध्यॆ सरस्वती करमूले तू गोविंदम प्रभाते कर दर्शनम् ” इस मंत्र को बोलकर हाथ जोड़कर भगवान को प्रणाम करके उठाना चाहिए क्योंकि हम अपने हाथों से कर्म करके लक्ष्मी को प्राप्त करते हैं
पितृपक्ष का महत्व !!!!!!!
पितृपक्ष हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण समय होता है, जिसे पूर्वजों के प्रति श्रद्धांजलि और तर्पण का समय माना जाता है। यह समय 15 दिनों का होता है और भाद्रपद मास की पूर्णिमा से अश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। इसे श्राद्ध पक्ष या महालय भी कहा जाता है।
इस दौरान, लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए पूजा-पाठ, तर्पण, और पिंडदान करते हैं। यह समय विशेष रूप से उन पूर्वजों के लिए समर्पित होता है, जिनका स्वर्गवास हो चुका है। माना जाता है कि पितृपक्ष में किए गए श्राद्ध और दान से पूर्वजों की आत्मा संतुष्ट होती है और उन्हें शांति प्राप्त होती है।
पितृपक्ष का महत्व:
- तर्पण: इसमें पूर्वजों की आत्मा के लिए जल अर्पित किया जाता है। इसे पवित्र जल से किया जाता है और यह एक प्रमुख कर्म होता है।
- पिंडदान: पिंड का अर्थ होता है चावल का गोल आकार का गोला। इसे पिंडदान के रूप में अर्पित किया जाता है, जो आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान करता है।
- दान: इस अवधि में दान का भी विशेष महत्व है। भोजन, वस्त्र, और जरूरतमंदों को सामग्री दान करना पुण्य का कार्य माना जाता है।
- श्राद्ध: यह पूर्वजों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने का प्रमुख अनुष्ठान है। परिवार के लोग एकत्र होकर पूर्वजों का स्मरण करते हैं और उनके लिए विशेष भोजन बनाते हैं, जिसे ब्राह्मणों को अर्पित किया जाता है।
पितृपक्ष का समापन महालय अमावस्या के दिन होता है, जिसे विशेष रूप से श्राद्ध और पिंडदान का दिन माना जाता है।
पितृपक्ष मे पनि देने का महत्व !!!!!!
पितृपक्ष में पानी देने का (तर्पण का) विशेष महत्व है। इसे धार्मिक दृष्टिकोण से पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का एक प्रमुख कर्म माना जाता है। तर्पण का अर्थ है “तृप्ति देना,” और यह अनुष्ठान पूर्वजों की आत्माओं को जल अर्पित करके उनकी तृप्ति और शांति के लिए किया जाता है। इसे पितरों को जल अर्पण करने का सबसे सरल और प्रभावी तरीका माना जाता है।
पितृपक्ष में पानी (तर्पण) देने का महत्व:
- पूर्वजों की आत्मा को तृप्ति: माना जाता है कि तर्पण के माध्यम से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है। जल अर्पण करने से उनकी आत्मा शांत होती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। यह उनके मोक्ष के मार्ग को आसान बनाता है।
- कर्म ऋण का निर्वाह: हिंदू धर्म में यह विश्वास है कि हर व्यक्ति पर अपने पितरों का ऋण होता है, जिसे पूरा करना आवश्यक है। तर्पण के माध्यम से व्यक्ति अपने पितृ ऋण का निर्वाह करता है, जो उसके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाने में सहायक होता है।
- अधूरा जीवन चक्र: यह माना जाता है कि जिन पितरों की मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार या तर्पण जैसे कर्म पूरे नहीं होते, वे भटकते रहते हैं। पितृपक्ष में जल अर्पण करके उनकी आत्माओं को मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने में मदद की जाती है। इससे वे पूर्णता प्राप्त करते हैं और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाते हैं।
- आशीर्वाद प्राप्त करना: तर्पण करने से पूर्वजों की कृपा प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति और उसके परिवार को सुख, समृद्धि, और स्वास्थ्य मिलता है। यह माना जाता है कि पितरों की आत्माएं तृप्त होने पर अपने वंशजों को आशीर्वाद देती हैं, जिससे उनके जीवन में खुशहाली आती है।
- धार्मिक और आध्यात्मिक पुण्य: पितृपक्ष में तर्पण करना एक धार्मिक और आध्यात्मिक कर्तव्य है। इसे करने से व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है, और यह उसके पितरों की आत्माओं के साथ उसके संबंध को मजबूत करता है। यह एक प्रकार से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी खोलता है।
तर्पण कैसे किया जाता है?
तर्पण के लिए व्यक्ति को पवित्र जल (आमतौर पर गंगाजल या अन्य पवित्र नदी का जल) अंजलि में लेकर मंत्रों के साथ अपने पूर्वजों को अर्पित करना होता है। तर्पण करते समय आमतौर पर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके जल अर्पित किया जाता है, क्योंकि दक्षिण दिशा को यमराज की दिशा माना जाता है। इसमें व्यक्ति तीन बार जल अर्पित करता है:
- देवताओं को
- ऋषियों को
- पितरों को
इस दौरान व्यक्ति विशेष मंत्रों का उच्चारण करता है और अपने पितरों को जल अर्पण करता है। इसे करने से पितरों की आत्माएं प्रसन्न होती हैं और उन्हें संतुष्टि मिलती है।
तर्पण के दिन:
पितृपक्ष के दौरान प्रत्येक व्यक्ति को उस तिथि को तर्पण करना चाहिए, जिस तिथि को उनके पूर्वजों का निधन हुआ हो। इसके अलावा, महालय अमावस्या को विशेष रूप से तर्पण किया जाता है, क्योंकि यह दिन सभी पितरों को समर्पित होता है।